अजीब सी बंदिशें है अब
अजीब सी बंदिशें है अब
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मंदिरों के दरवाज़े पर ताला पड़ा है,
अल्लाह का घर भी सुना पड़ा है,
न गिरजा घरों में मोमबतियां जली हैं
न गुरु के दरबार में कोई चादर चढ़ी है
न अब किसी को राम को पड़ी है,
न किसी को अल्लाह की पीर है,
आज सबकी जो जान पर आ पड़ी है।
सूनी हो गयी गालियाँ सूनी हो गयी है सड़कें,
न बच्चे अब स्कूल जा पाते है,
न पापा शाम को घर आ पाते है,
अजीब सी बंदिशें है अब
न किसी से मिलना जुलना है
अब तो जो डॉक्टर इंसान है
आज वही हमारा भगवान है।
