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Himanshu Sharma

Abstract

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Himanshu Sharma

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देस की मिट्टी

देस की मिट्टी

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देस की मिट्टी जब हवा के संग उड़कर आये विदेश में,

चेहरा छूकर हाल बता जाती है अपनों का मेरे देस में!


मैं दूर हूँ अपनों से रातें काट देता हूँ आँखों में आँसू भर,

यादें अपनों की आती रहतीं हैं, धुँधली नहीं होतीं पलभर!

आँखें बंद करूँ तो प्रत्यक्ष खड़े हो जाते हैं सब अपने मेरे,

वो बात करते हैं मुझसे हर रात ढलकर यादों के भेस में!


माँ का हरबार फ़ोन पे कहना कि बेटा अपना ध्यान रखना,

पिता का मुझे फ़ोन पे कहना कि मन लगाकर काम करना!

बीवी, बच्चों और बहन का बात करने को लालायित रहना,

निश्छल प्रेम है दिखता हरेक निवेदन और हरेक आदेश में!


एक छलावा है कि विदेशों में जाकर सारे सुख मिल जाते हैं,

पैसा बहुत आ जाता है बटुए में पर सारे अपने छीन जाते हैं!

मिट्टी जानती है कि अपने बेटे पर कैसे हक़ जताया जाता है,

इसी मिटटी में जब मिलना है तो मिलने आ जाओ स्वदेस में!


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