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ARVIND KUMAR SINGH

Abstract Tragedy Inspirational

4.5  

ARVIND KUMAR SINGH

Abstract Tragedy Inspirational

डर

डर

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सांस रोक के आगे बढती 

निरंतर ही मैं एक नारी हूं

कोई मुश्किल न रोक सके

अब हर मंजिल पर भारी हूँ


कौन सा क्षेत्र अछूता है ऐसा

जिसपर मैंने कब्जा न किया

आशमान को मुट्ठी में समेटा

जमीन को भी सजदा किया


मुझको भरमाने का षडयंत्र

भी हर मौके पर रचा गया

अपना उल्लू सीधा करने को

राजनीतिज्ञों द्वारा छला गया


स्वार्थ सिध्दि को कई बार पर

लालच के वश में भी होती हूं

बरसों बाद शिकायत कर दूं

भले ही मर्जी से सोती हूँ


दुनिया की चकाचौंध से मैं

कई बार पथभ्रष्ट भी होती हूं

भटक कर अंधी गलियों में

फिर जिन्दगी भर को रोती हूं


शदियों तक दब के रही पर

अब पूरी दुनिया मेरा घर है

जयचंदों द्वारा छली न जाऊं

अब भी मुझको ऐसा डर है।


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