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Lata Bhatt

Romance

3  

Lata Bhatt

Romance

ढूंढती फिरती मैं दीवानी

ढूंढती फिरती मैं दीवानी

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ढूंढती फिरती मै दीवानी, इस डगर से उस डगर,

ढूंढ दे मुझको मुझमे से मुझे उस नजर की तलाश है।


उस गली क्यूँ लगे पहचानी, इस नगर जो अनजान है,

कोई है दिलके इतने पास, कोई क्यूँ इतने खास है।


मटकी की मिटटी कच्ची, फिर भी कोशिश जारी है,

क्या करे पास पाई इतनी, न बुझने वाली प्यास है।


जिंदगी का जुआ तो मै जी, हार चुकी पूरी तरह,

घूमती रहती आज भी फिर क्यूँ हाथ में लिए ताश है।


जाती हर सॉस करती है, मुझ को तो यह आगाज़,

लौटने वाली नहीं है कोई, क्या तुझको एहसास है।


छीन ली मुझसे मेरी मस्ती, वक्त ने छीना अल्हड़पन,

और भी बहुत छीनने वाला है, करना जो विन्यास है।


कर लिया मैंने बहुत, अब तक इस जहाँ का लिहाज,

मुलाहिज़ा करूँगी वही जो, आता दिल को रास है।


एक ही रहेगा आखिर में, क्यों पाल रखूँ इतने रिश्ते,

एक वही संभाल के रखूँ, बनना उसका दास है।


एक दीवानी थी जो ये, बताती थी गली गली नाचके,

वह भी चली गई वहाँ, जहाँ गिरधर उनके पास है।।


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