"ढलती हुई उमर में, रंग इश्क़ का और गहरा सा हुआ जाता है"
"ढलती हुई उमर में, रंग इश्क़ का और गहरा सा हुआ जाता है"
चाँदी सी उगती है जब बालों में,
दिल सोने का हुआ जाता है,
ढलती हुई उमर में,
रंग इश्क़ का और गहरा सा हुआ जाता है,
ज़िद्दी था जो अभी तक,
इश्क़ वो ख़ामोश हुआ जाता है,
लफ़्ज़ों से परे,
बिन कहे, बिन सुने
आँखों से बयां हो जाता है,
उभरी लकीरें चेहरे की हों
या
जुल्फ चाँदी सी,
उनकी हर अदा में,
हंसीं चाँद नज़र आता है,
अश्कों उनकी आँखों का,
हमारी पलकों से छलक जाता है,
उनकी मुस्कुराहट का नूर,
जाने कैसे हमारे चेहरे पर उतर आता है,
उनकी ख़ातिर ख़ुदा से,
थोड़ी सी और ज़िन्दगी,
माँगने को दिल कर जाता है,
ढलती हुई उमर में,
रंग इश्क़ का और गहरा सा हो जाता है।