दास प्रथा का दौर
दास प्रथा का दौर
राजा की सेना ने किया,
एक पड़ोसी राज्य पर आक्रमण,
सबकुछ तहस नहस कर दिया,
जो लुट सकते थे,
लुट लिया।
आखिर में बच गए,
इंसान।
उनको बंदी बना,
अपने देश ले गया।
वहां चलती थी,
इंसानों की मंडी।
सब बंदीयों को,
मंडीं में,
कुलीन व्यक्तियों के समक्ष,
पेश किया जाता।
फिर उनके रंग रूप अनुसार,
उनकी बोली लगती,
जितना खुबसूरत बंदी,
उतनी ऊंची बोली,
और उतना अधिक धन,
राजा के खाते में।
इन सब बंदीयों को,
खरीदने के बाद,
उस घर में,
दास या दासी बनाकर,
रखा जाता
जिसने उन्हें खरीदा।
शायद यहीं से,
देह व्यापार शुरू हुआ।
इन सारे बंदीयों की,
सारी उम्र,
इस तरह,
दास या दासीयों की तरह,
निकलती।
कई कुलीन व्यक्ति,
जो इनमें खुबसूरत,
उन्हें मनोरंजन के लिए,
इस्तेमाल करते।