विडंबना
विडंबना
इन्साफ की चीख है विडंबना अधिक है
क्या कुछ महीनों का कारावास दोषी के लिए सीख है !
मांग में सिंदूर भरे पति का वो इंतजार करे
कैसे उसकी निशपाप आंखों में इन्साफ मेरा आंसू भरे
उसपर है पूरा परिवार का भार कैसे छिनूँ उनके मुंह से आहार?
उपर से उसके बच्चे चार कैसे करूं उनका भविष्य अंधार?
अपनों ने सब छोड़ा साथ वादा किए थे जो पकड़े हाथ
शब्दों में उनके घृणा की बू सती हूं इसका प्रमाण भी दूं !
समाज ने किया मेरे श्रृंगार पर गौर
श्रृंगार से लगता है अब डर
किसी को पसंद आ जाऊं दिया गया सिर्फ मुझ पर जोर पसंद आने के लिए
सबने कहा जा बेटा थोड़ा श्रृंगार कर ! अब किनसे करूं मैं इन्साफ का जीकर
जब पूरा दुनिया ही है दोषियों का काला समंदर।