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Dilasha Dibyamayee Pradhan

Abstract

4.2  

Dilasha Dibyamayee Pradhan

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रिश्ता

रिश्ता

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तुममें ऊर्जा है राम बनने की

मुझमें सीता जितनी हिम्मत नहीं

कौशल्या बन जाती मगर

इतना मुझमें सहन शक्ति नहीं


भरत बनके घुट घुट कर जीयूँ

पछतावे का जहां अंत नहीं

दशरथ बनके बनवास भेजूं

इतना पत्थर मेरा ह्रदय नहीं


लक्ष्मण बन कर सदा साथ रहूं

इतना तो मेरा सौभाग्य नहीं

हनुमान बनके रक्षा करूं

बाहु में उतने बल नहीं


रिश्ता पूछता है समाज राम

उत्तर तो मेरे पास नहीं

ऐसा रिश्ता जोड़ दो प्रभु

पंकज में मुदित भ्रमर कोई।


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