कर्म -तबाही की तरफ
कर्म -तबाही की तरफ
कर्म तबाही की तरफ क्यों बढ़ाए
तुमने बहुत समझाते थे
लेकिन फिर भी तुमने एक ना सुनी
गलत संगत में रहकर इंद्रजाल में करी
ना जानने किससे बात -चीत शुरू
वो अपनी पहचान जो बताता वो सही
है या नहीं किसी को और तुमने अपने
निजी जीवन की सारी बातें बता दीं
खुद की तबाही अपने कर्मों आज तूने
लिख डाली मेहनत से कमाई इज्ज़त आज
राख हो गई काश सुन ली होती तूने सबकी
बात आज नहीं होती काली तेरी रात।
