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Kadambari Gupta

Others

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Kadambari Gupta

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सर्दियों के नज़ारे

सर्दियों के नज़ारे

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इन सर्दियों के नज़ारे भी

कितने अलग होते देखो

कहीं तो करता होता धूप का इंतज़ार

कोई तो दूसरी तरफ है एक कवि जो

इस सर्दी के मौसम को अपनी कविता

में उतार रहा

कंबल की तलाश करता कोई भिखारी गरीब

आज एहसास होता की बराबरी से दूर

बहुत से फासलों की ज़ंजीरों में कैद यह

समाज उम्मीद करती हूं की अब ठंड

हो जाए कम कहीं अपने खोए प्यार को

याद कर हो गई यूं आंखें नम हो गई

यूं आंखें नम।


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