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Kadambari Gupta

Tragedy

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Kadambari Gupta

Tragedy

दबी हुई आवाज़

दबी हुई आवाज़

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वो आवाज़ मेरी दबी हुई जो बहुत कुछ कहना चाहती थी

विधालय में क्या हुआ था सबको बताना चाहती थी

वो रंग रुप व कद का मेरे उपहास हर दिन बनाते थे वज़न को

लेकर चुभने वाली बात कहते थे जब शिकायत करने की सोची तो आईना कहने लगा खामोश तुम लड़की हो किस बात की शिक़ायत करोगी हां आखिरकार शादी कौन करेगा

घी रोटी पर मत लगाया करो खुराक नियमित रखो हमें इसी समाज में रहना बेइज़्ज़ती नहीं हुई तुम्हारी सच ही तो कह रहे थे तो आंसू क्यों बहा रही हो उस दिन मेरी आवाज़ सदा के लिए खामोश हो गई बहुत सारी बातें करने वाली मौनव्रत धारण करने पर मजबूर हो गई सारे साफ रंग वाली लड़कियों से तुलना होती रहती थी तु उनके जैसी बन तु उनके जैसी बन 

यही बात सुनाई जाती थी फिर एक दिन कागज़ों पर स्याही से एक कहानी लिखी दबी हुई आवाज़ का क्या था राज़ और 

वो पुरी होने पर छपवादी सहारना किताब की देखो हुई लेकिन फिर भी घुमफिरकर बात रंग रुप कद पर आ ही गई शायद नहीं हुं मैं इस दुनिया की किसी दूसरे गृह से आती हुं

कब तक ऐसा चलता रहेगा आज मुझे यह सवाल पूछना है 

आज मुझे यह सवाल पुछना है आज सब कुछ बदल गया तीन सौ साठ डिग्री बदल गई लेकिन कब बदलेगी सोच कब बदलेगी सोच इसका इंतज़ार करते करते एक दिन

ज़िंदगी ही खत्म हो जाएगी फिर सबको मेरी आत्मा पर दया आएगी बेचारी चली गई सब कहेंगे लेकिन मेरी सिसकियों की आवाज़ का क्या उसकी भरपाई कौन करेगा उसकी भरपाई कौन करेगा।


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