बरसात
बरसात
वो सिर्फ बरसात के दौरान ही क्यों घर से बाहर निकलती,
वैसे किसी से ना करती बात घर से उसके गुज़रने पर ऐसा लगता मानो की जैसे कोई यहां पर रहता ही नहीं वो जैसे ही बरसात होने की आहट सुनाई देती तुरन्त घर से अपने भागी चली आती , कुछ चिट्ठियां रखकर किनारे पर वापस आ जाना वापस आ जाना कहकर चली जाती,वो किससे यह चिट्ठियां लिखती थी वो किससे यह चिट्ठियां लिखती थी
किससे वापस आने का आग्रह कर रही थी कौन है जो उसके जीवन से चला गया कौन है जो उसके जीवन से चला गया
क्या वो बरसात में ही कहीं चला गया बिन बताए लापता हो गया था पुरे साल घर के अंदर रहती सिर्फ बरसात के दौरान ही निकलती बाहर घर की बत्ती भी नहीं जलती सिर्फ बरसात में ही जलाती वो बत्ती अपने घर की, कैसे रहती वो इस घोर अंधेरे में दुर से घर लगता कोई गुफा या किला,
क्या जो चला गया वो उसका सगा संबंधी था या आशीक
देखो भिलख -भिलख कर रोती वो कहती क्या ग़लती मुझसे हो गई माफ कर दो वापस आ जाओ वापस आ जाओ
क्या उन चिट्ठियों में सारी कहानी लिखी या सिर्फ वापस आने की दरखुआसत मन तो करता यह चिट्ठीयां पढ़ लुं
लेकिन धुल गयी होगी इनकी बारिश में शयाही बस जिसके लिए वो चिट्ठीयां लिखीं उसका उसने इंतज़ार किया वो उठकर पढ़ ले लेकिन सवाल यही है क्या वो वापस आएगा कया वो वापस आएगा।