STORYMIRROR

अनुपम मिश्र 'सुदर्शी'

Crime Inspirational

3  

अनुपम मिश्र 'सुदर्शी'

Crime Inspirational

विकार प्रति प्रेम

विकार प्रति प्रेम

1 min
128

प्रति उर में अब बसता जाए अपकर्म द्वेष व दुराचार।

भुजदंड क्रोध से कंपित हों रक्तचले बन तपित धार।।


किसने भंग की मर्यादा चरित्र त्याग कर बार बार।

किसने लोलुप कामी बन कर झुठलाया है प्रेम सार।।


प्रेम सदा निर्मल ही रहा राधा केशव सा ही अपार।

कामी कलि अनुचर ने समाज में व्याप्त किया है ये विकार।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Crime