मैं तो उन्मुक्त हिमालय
मैं तो उन्मुक्त हिमालय
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वो भटका भ्रमर नहीं मैं जो कलियों में गुम रहता है।
बस प्रणय हेतु चुपचाप जो डांट, दंड को सहता है।।
न राग रंग न किसी संग मैं न ही गीतों की लय हूं।
प्रत्येक ऋतु में अटल खड़ा मैं तो उन्मुक्त हिमालय हूं।।
न कोमल हूं बेचारा हूं जो हर प्यारी की चाह रहे।
स्वयं मार्ग करता प्रशस्त क्यों चलूं यदि कोई राह कहे।।
