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अनुपम मिश्र 'सुदर्शी'

Children Stories Inspirational Children

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अनुपम मिश्र 'सुदर्शी'

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मैं तो उन्मुक्त हिमालय

मैं तो उन्मुक्त हिमालय

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वो भटका भ्रमर नहीं मैं जो कलियों में गुम रहता है।

बस प्रणय हेतु चुपचाप जो डांट, दंड को सहता है।।

न राग रंग न किसी संग मैं न ही गीतों की लय हूं।

प्रत्येक ऋतु में अटल खड़ा मैं तो उन्मुक्त हिमालय हूं।।

न कोमल हूं बेचारा हूं जो हर प्यारी की चाह रहे।

स्वयं मार्ग करता प्रशस्त क्यों चलूं यदि कोई राह कहे।।


   


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