STORYMIRROR

अनुपम मिश्र 'सुदर्शी'

Inspirational

4  

अनुपम मिश्र 'सुदर्शी'

Inspirational

चेतना

चेतना

1 min
10

तुम भले मधुप की भांति रहो प्रिय पुष्पों के तटस्थ।

आसक्ति तुम्हे बहकाएगी पौरुष हो जायेगा निरस्त।।

अनुपम वृत्तांत कहूं तुमसे, ज्ञानी ध्यानी सब पार गए।

तुम निश्चेतना में जब डूबे, अंतर्द्वंदिता से हार गए।।

हर समय वो आना जाना फिर खाना और कमाना ही।

उद्देश्य विहीन न आत्म शांति न तत्व कभी जाना ही।।

शक्ति चेतना काया में, कुछ समय उसी का ध्यान करो।

अंतरात्मा के माध्यम से परमात्मा को संधान करो।।

    


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational