तुम मेरी कविता हो
तुम मेरी कविता हो
मैं कमल दलों से युक्त सरोवर,
तुम हिलोरती सरिता हो।
मैं श्रृंगार, वीर रस जैसा,
तुम मेरी कविता हो।
है मधुरिम सौंदर्य तुम्हारा,
प्रेम बाढ़ जब आए।
तोड़ फोड़ लज्जा के बंधन,
फिर मुझमें मिल जाए।
अरुण प्रभा की स्वर्ण रश्मि,
जब प्रभात में आए।
प्रेम हृदय हो हरा भरा,
मन आह्लादित हो जाए।।
