चंद्र-हिलोर
चंद्र-हिलोर
विज्ञप्ति जताने को सहर्ष, उर आकांक्षा मेरे मन की।
याचना बनी, क्रोधाग्नि, अब अभिलाषा अंतर्मन की।।
प्राण- त्राण सा विजय हुआ, जो अपनाया अमोदित हो।
मैं पूर्णिमा का पूर्ण चंद्र तुम उदधि लहर आंदोलित हो।।
मैं यदि करतल में ले तुमको अंजलि में भरकर ले आऊं।
अगत्स्य ऋषि ब्राह्मण के सम बस एक घूंट में पी जाऊं।।
आत्मसात होकर के जब अधरों से धारा जायेगी।
तो चंद्र कांति की आभा भी बस प्रेम रंग दर्शाएगी।।

