STORYMIRROR

अनुपम मिश्र 'सुदर्शी'

Abstract Children Stories Inspirational

4  

अनुपम मिश्र 'सुदर्शी'

Abstract Children Stories Inspirational

अनुपम

अनुपम

1 min
12

छोटा है बहुत यह परिधि बन्ध,
मैं हूं अनन्त विस्तीर्ण प्रिये।
निशि वासर व्यथित नहीं होता,
अब चक्षु नहीं संकीर्ण प्रिये।।
मैं अनुपम अनल प्रकाश पुंज सा,
जलता रहा हूं युग युग तक।
तमिश्र हेतु मैं सूर्य रश्मि,
धरती से फैला हूं नभ तक।।
 माया के तुच्छ विकारों से,
क्यों व्यर्थ करूं मैं आर्तनाद।
विगत गया तो चला जाए,
है क्या अपना जो हो विवाद।।

- अनुपम मिश्र 'सुदर्शी'


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract