कवि एवं साहित्यकार
छोटा है बहुत यह परिधि बन्ध, मैं हूं अनन्त विस्तीर्ण प्रिये। निशि वासर व्यथित नहीं होता, अब चक्षु नही... छोटा है बहुत यह परिधि बन्ध, मैं हूं अनन्त विस्तीर्ण प्रिये। निशि वासर व्यथित नही...
धर्म, कर्म, साहित्य क्रूरता नहीं सिखाता।। धर्म, कर्म, साहित्य क्रूरता नहीं सिखाता।।
बस प्रणय हेतु चुपचाप जो डांट, दंड को सहता है।। बस प्रणय हेतु चुपचाप जो डांट, दंड को सहता है।।
अश्रुओं में बह गई वो ख्वाब की कहानियां । मिट नहीं पाईं अभी वो प्यार की निशानियां।। अश्रुओं में बह गई वो ख्वाब की कहानियां । मिट नहीं पाईं अभी वो प्यार की निशान...
कुछ सरल मिलें तो मिले चतुर, कुछ सरल मिलें तो मिले चतुर,
छोटा है बहुत यह परिधि बन्ध, मैं हूं अनन्त विस्तीर्ण प्रिये। छोटा है बहुत यह परिधि बन्ध, मैं हूं अनन्त विस्तीर्ण प्रिये।
तुम भले मधुप की भांति रहो प्रिय पुष्पों के तटस्थ। तुम भले मधुप की भांति रहो प्रिय पुष्पों के तटस्थ।
मैं यदि करतल में ले तुमको अंजलि में भरकर ले आऊं। मैं यदि करतल में ले तुमको अंजलि में भरकर ले आऊं।
प्रेम हृदय हो हरा भरा, मन आह्लादित हो जाए।। प्रेम हृदय हो हरा भरा, मन आह्लादित हो जाए।।
मगर मैंने नई नींव डाली है ये अनुपम। मगर मैंने नई नींव डाली है ये अनुपम।