दामिनी
दामिनी
असंख्य वेदना से गुजरे थे, वो दो नैना,
जिन्होंने खुद में उन्मुक्तता के ख्वाब भरे थे,
पूरे करने की राह में, जब वो निकल पड़े थे
वहशी दरिंदगी ताड़ रही है, संपूर्ण वसन के
भीतर भी चुपके से झांक रही है, क्यूं ना इतना
समझ सके थे,
नैना तो बस अपने ख्वाबों को पूरा करने में लगे थे।
हाय! दुष्ट तुझे जरा भी लज्जा ना आई,
अपनी कुत्सित भूख वृत्ति, मिटाने को तूने
मासूम कली पर यह कैसी, दर्दिल गाज है गिराई
कितना तड़पी-कितना छटपटाई, कितना तेरे आगे
वो गिड़गिड़ायी,
चीत्कारती चीखें उसकी, क्यूं नहीं दी किसी को
सुनायी।
किसी के सर्पिल दंश को, झेला कैसे उसने,
लहू से लथपथ उसकी देह की, हर रग-रग चिल्लायी
श्वास अब भी दौड़ रही है, नृशंस सी काया में,
जीवित कि मृत जैसे कोई अंतर नहीं।
दो नैनों में पले ख्वाबों को पूरा करने की चाहत में,
ये कैसी? मृतांतक कीमत चुकायी उसने,
सर उठा के अब भी, बेहयाई से घूम रहे हैं,
अधखिले-पुष्प को अपने घृणित इरादों से
मसलकर कुचला जिस-जिस ने।
किया है जब जघन्य अपराध, फांसी की सजा
का भी कम होगा उन सबके लिए ताप,
नहीं मिलेगा करने को कोई भी पश्चाताप,
मौत ही सजा है तुम सबकी, मौत का जब सजेगा
सिर पर ताज,
कुछ तो तब तुम्हें अपने पाप का, अवश्य ही होगा
अहसास।।