तबस्सुम
तबस्सुम
बचाया खुद को इतना हमने
फिर भी रूह तलक तरबतर भीग गए
दूरी बनायी चाँद सूरज से हमने
फिर भी दूधिया चाँदनी में नहा गए
गुहार बस्तियों को बचाने की लगाई थी हमने
फिर भी छलकती निगाहों का निवाला बन गए
दर्द की मिठास को अमृत समझकर पिया हमने
फिर भी आँसुओं से अनचाहे भर गए
एक कतरा आसमान मांगा था सिर्फ हमने
जबरदस्ती की मेहमाननवाजी से ऊब गए
तबस्सुम किया मुस्कुराकर हमने
फिर भी कड़ी धूप में जल गए
जान लगा दी बिगड़े हालात को सुधारने की हमने
फिर भी 'नालंदा' वक्त की तपिश में सुलगते गए