दाग
दाग
अब वो पहले जैसी बातें नहीं,
अब मेरी शामों में तुम और तुम्हारा साथ दोनों नहीं,।।
मुलाक़ात हजारों से होती है,
ये आंखे हर सूरत में बस तुझे खोजती है,।।
तू भूल बैठा है मुझे ना जाने किसकी खातिर,
तरसी है आंखे एक तुझे देखने की खातिर,।।
कच्चे धागे थे हम,
बेवजह साथ थे हम,।।
अनजान थे आने वाले कल से,
हम बेखबर थे तेरे फरेब से,।।
दो पल को ठहरे और फिर तुम अपनी राह चल दिए,
बन कर मुसाफिर एक नई राह खोजने चल दिए,।।
मेरे लिए जगह खाली ही ना थी तेरे दिल के मकान में,
काफी भीड़ थी तेरे दिल के मकान में,।।
ये घाव भी भर जाएंगे,
आहिस्ता आहिस्ता ये दाग भी धूल जाएंगे,।।
हर हद हर दायरे को भूल बैठे थे,
एक तेरी चाहत में हम सुध खो बैठे थे,।।
इस ठोकर से एक सबक भी मिला,
सहारे के नाम पर बस दिखावा ही मिला,।।
तलाशने निकले थे हम सच्चा साथ और खाली हाथ लौटे है,
किस चेहरे पर करे भरोसा यहां हर चेहरे पर मुखौटे है,।।
जो दिल के बेहद करीब थे,
वो ही दिल के दर्द की वजह बने थे,।।
तेरे ख्यालों में डूब कर हम सियहि यूं बिखेर बैठे है,
जाने अनजाने तेरे सितम पर नगमे लिख बैठें है,।।