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Nitu Arya

Tragedy

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Nitu Arya

Tragedy

चमरौटी

चमरौटी

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बीहड़ के बीच में झुरमुट की छांव में 

कसेले, सूखे पत्तों और मूँज से बने घर है इस गांव में

छप्पर पर खिले लौकी कोहड़े के फूल 

खेत खलियान में उड़ते हुए धूल 

तप रही धरा भी सूरज की आंच में 

बारिश का नामोनिशान नहीं जेठ की मास में 

आंगन में पसरा सन्नाटा गलियां वीरान है 

लग रहा है जैसे यहां पर रहता ना कोई इंसान है 

बड़ी मुश्किल से दिखा एक बूढ़ा बैठा पीपल के नीचे 

आंखों को मींच कर जूते से सूजे के धागे को खींचे 

दौड़कर पहुंची में उसे बुजुर्ग बाबा के पास 

फटी धोती और पगड़ी से लिपटे हो जैसे हाड़ और माँस

 पूछने पर दर्द बाबा का कुछ यूं है छलका

सुनकर पत्थर भी हो जाए मोम सा हलका

 आता है फरमान पंडित और ठाकुरों के नाम का

 तुम हो पैरों की धूल हमारी गुलामी एकमात्र रास्ता है तुम्हारे काम का

 पैखानों की सफाई, मैलों की ढुलाई 

गुदड़ी की बिनाई और जूते चप्पल की सिलाई

 घर- बाहर के कूड़े कचरे के ढेर से

 सिर पर हमारे यह बोझ लदा है बड़ी देर से 

फुलबसिया के होंठों की हंसी 10 वर्ष तक होते ही बदल गई खामोशी में 

किरतिया की लाज गई छाई है बेहोशी में 

तुम्हें ना अपना पूरा तन ढकने का अधिकार है

हमारे जूठे खाने के अलावा ना तुम्हारा कोई आहार है

मँगरू का सिर फोड़ा बस इस बात पर 

बोला अछूत ना लिखने दूंगा तुम्हें हमारे माथे पर 

घिसावन ने कहा अपने बेटे को खूब पढ़ाऊंगा

दलित अछूत के बेटे को एक बड़ा अफसर बनाऊंगा 

ज्यों ही इतनी खबर पहुंची ठाकुरों के पास

 8-10 मुछतण्डे आए मोटी लाठी के साथ 

लाठियों की खटाखट में हड्डियों की चरमराहट गुम हो गई

 होश आया तो बेटे बाप दोनों के हाथ पैर की हड्डियां सुन हो गई

 गलियां शांत हो गई लोगों की चीख और दर्द की कराह से

 पेड़ पौधे भी मुरझा चलें इन बेचारों की आह से 

यह ऐसा गांव है जहां से भुखमरी, बेबसी, लाचारी ना कभी लौटी

 ऐसे गांव तुम्हें बहुत मिलेंगे बेटी जिसे लोग कहते हैं चमरौटी

लोग कहते हैं चमरौटी, लोग कहते हैं चमरौटी।


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