चलना ही फितरत बनी अंजाम की
चलना ही फितरत बनी अंजाम की
कैसी हुई बरसात प्यार की,
एक बूंद नशीब नहीं प्यास की।
तिनका तिनका जोड़ कर बांधा,
हाथों से बुना प्यार का घर साधा।
कैसी चलीं आंधियां तूफान की,
एक सूत न छोड़ी जमीं प्यार की।
प्यार के बादल बरस गये इतने,
कोई गली न बची दिल में सैलाब की।
सूनी राहों में जिंदगी आगाज की,
चलना ही फितरत बनी अंजाम की।