इक इश्क ऐसा भी
इक इश्क ऐसा भी


वो सौंधी सी खुश्बू,
बारिश की बूँदें,
पत्तों की सर सराहट,
बूंदों की छीटें।
तुम्हारा यूँ पास आना
मेरी बाहों में समाना।
वो पर्फ्यूम की खुशबु में से
भी तुम्हारी खुश्बू आना।
मेरे ज़ुल्फों को जिस तरह तुम
अपनी उंगलियों से सराहते
हौले से कानों के पीछे लाते
और हल्के से फिर कानो को छूकर
थोड़ा सा मेरी बालियों को सहलाते।
वो मेरे बालियों का काँपना
मानो मेरे दिल का धड़कना हो,
आखें खुली ना हो फिर भी
तुम्हारे चेहरे का दिखना हो।
मेरे हाथ अपने आप
तुम्हारा जिस्म जांच लेते हैं
मेरी आखें तुम्हारी नज़रों से
मिली तो रूह नाप लेती हैं।
इसीलिये जब तुम मुझसे कहते हो कि
"हमें ये रिश्ता यहीं ख़त्म करना होगा"
मैं हँसती हूँ ये सोचकर कि
अब शायद मुझे भी आँखों से सच
और ज़ुबान से झूठ बोलना होगा।
तुम्हारी तरह परिपक्व नहीं हूँ,
नयी हूँ इस बाज़ार में पर मजबूर नहीं हूँ ;
इसीलिए मैंने भी सीख लिया हँसी में छुपाना
वो विरह की रातों का बीतना,
वो तुम्हें सड़क के मोड़ पर
अनजान बनते देखने की यातना।
वो उस बस स्टॉप पर जहाँ पहले
एक दूसरे का इंतज़ार करते थे
आज आसपास खड़े बस का इंतजार करना,
और जब अनजान बन कर भी तुम्हारा
भीड़ भरी बस में मेरी आबरू का ध्यान रखना
ये सब सीख लिया छुपाना।
5 साल बहुत जल्दी बीत गए,
तुम्हें लगता है कि तुम जीत गए,
क्यूँकि तुम्हारी शादी हो गयी,
इतना भी नहीं अंदाज़ा कि उम्र भर की कैद में हो तुम
ऊंच नीच की लड़ाई में हार चुके हो तुम।
दिलो जान से चाहा था तुम्हें मान लिया था रब ही,
जितना इश्क़ था उस वक्त उतना ही है अब भी।
पर सीख गई हूँ इन बातों को धीरे धीरे भुलाना,
जात में मैं नीची हूँ सीख लिया खुद को समझाना।
हाँ तुमने कोशिश की थी अपने माँ बाप को समझाने की,
कहा था लड़की बुरी नहीं बस जात की बात भुलानी थी।
मगर क्या करते तुम भी थे बेचारे
माँ के लाडले जो ठहरे,
जब माँ ने तस्वीर दिखाई तुम्हें
उस लड़की की जो तुम्हारे जात से थी,
रूप रंग से मोहित हो गए तुम,
माँ ने भी कह दिया उसकी सुंदरता का
रिश्ता भी जात पात से थी।
और फिर कह दिया उस रोज़ मिलकर,
मेरी आँखों से अपनी नज़रें छुपाकर,
कि " हमें ये रिश्ता यहीं ख़त्म करना होगा,
और दोस्त के नाते सफ़र तय करना होगा।"
सुना है तुम्हारी पत्नी का नाम है शांति
और शादी के इतने साल बाद भी
तुम्हारी पसंद नापसंद वो नहीं जानती।
पर इसके बावजूद भी एक बेटा है तुम्हारा,
एक गुज़ारिश है छोटी सी हो सके तो रख लेना।
अभी तो वो बच्चा है बड़ा हो तो बता देना,
कि बेटा खुशी जात पात से नहीं प्रीत से मिलती है,
इस घिनौने प्रथा को पीछे छोड़ने की जीत से मिलती है।
तो इंसान बनकर दिखाना,
दिखावे का इंसान मत बनना
और बारिश के बाद
मिट्टी की सौंधी खुश्बू की तरह
सबके आंगन को महकाना।