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Sukanta Nayak

Drama

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Sukanta Nayak

Drama

छोटी छोटी खुशियाँ

छोटी छोटी खुशियाँ

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ये दौड़ भाग की ज़िन्दगी

लंबी कतार ओर सघन प्रतिस्पर्धा

खुद को खुद से अलग कर रहा

जीने का अर्थ बदल रहा 

घने अंधेरों में खो रहे हैं खोके अर्थतवता।


पल पल रेत की तरह 

जकड़ो जितना फिसलता रहा

आंखे खुली तो संभल जाओ

कहीं दूर हो जैसे सूरज डूबता रहा।


थोड़ा और थोड़ा और कि लत से उभरो जरा

सर उठाके खुली आकाश को देखो जरा

क्या खोया क्या पाया इस माया से निकलो जरा

प्रकृति की सुंदरता में खो जाओ 

इस अमूल्य जीवन एक बार जीलो जरा।


ना धन ना दौलत जाए साथ

आयेथे अकेले शून्य हि जाएंगे खाली हाथ

कुछ देर मिली है जीने को 

ना करेंगे ब्यर्थ धर के हाथों में हाथ।


छोटी छोटी चीजों में खुशियां बटोरेंगे

गम का ना कोई हो निशान

मन की गहराइयों में परम आनंद को अपनाएंगे

सरल जीवन की परिकल्पना करेंगे

भूल जाएंगे ग़मों का आशियाँ।


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