चाँद की रश्मियों में वो बात नह
चाँद की रश्मियों में वो बात नह


आज चाँद की रश्मियों में वो बात कहाँ
दबे पाँव बहती रात के सन्नाटे से घिरी यादों की
पुरवाई स्वप्न मंजूषा को रौंद रही है।
सबकी दुआ उस चौखट तक जाती है
मेरी क्यूँ दुनिया के शोर में दब जाती है,
कहाँ हो तुम इस सूने मंज़र में याद बहुत आते हो।
छूना नसीब नहीं बस लिखकर अपनी
रचनाओं में तुम्हें गुनगुना लेती हूँ,
फासलों का तजुर्बा नहीं हार गया तन-मन तुम्हें पुकारते
बिसार कर तुम्हें मर जाऊँगी।
तन सोता है रिवाज़ निभाते पर मन जगता रहता है,
दिल बेचारा जुदाई का मारा आँसूं पी लेता है,
तुम क्या गए खुशहाल हलचल सी ज़िंदगी में विरानी भर गए।
मन में बसी गोप प्रीत नयन तक रही
पीर क्या कहूँ यादों के पृष्ठ पर संवेदना मिटती रही,
तुम्हारे इश्क में तड़पते उर्मिला बनी,
तुमसे प्यार करके भी मैं क्यूँ हरदम एकल ही रही।