चाहत
चाहत
चाहत इतनी कि ,बता नहीं सकता
चाहत ऐसी कि, तुम्हारे सिवा कोई और नहीं जंचता ।
चाहत ऐसी कि ,खुदा मान लिया,
चाहत ऐसी कि , जिसमें सिर्फ तुम हो ।
चाहत ऐसी कि ,तुम जो कहो सर-आँखों पर,
चाहत ऐसी कि, बस तुम्हें पाने की !
चाहत ऐसी कि, फ़िदा हो जाऊं ,
चाहत ऐसी कि, तुम्हारी हर खवाहिश पूरी करूँ ।
चाहत ऐसी कि, तुम पर सब कुर्बान,
चाहत ऐसी कि, तुम्हारे लबों पे बस मुस्कान लाऊं ।
चाहत ऐसी कि, दुनिया देखती रह जाये !
चाहत ऐसी कि, रब भी झुक जाये !
चाहत ऐसी कि, दुनिया तेरे जहां हो !
चाहत ऐसी कि, हर ख्वाब में तुम हो !
चाहत ऐसी कि, कोई किसी को ना चाहे इतना,
चाहत ऐसी कि, जिसमें तुम मेरी और मैं तुम्हारा - “सिर्फ तुम्हारा“।