चाहत का एक और रंग
चाहत का एक और रंग
जिसे आँखों ने देखा नहीं,
उसी से दिल लगा लिया इस दिल ने
जिसे छू कर देखा नहीं
उसे पे दिल लुटा दिया इस दिल ने
जिसे जाना नहीं
उसी को हमराज़ बना लिया इस दिल ने
जिसे समझा ही नहीं
उसी को ढूँढने में लगा दिया दिन रात
इस दिल ने।
जो बस गया है, वो इक अहसास है
इस दिल में
वो एक भक्त की भक्ति बन बैठा है
इस दिल में
वो एक समुद्र गहरा है, जो मौजों की तरह
बन बैठा है इस दिल में
वो एक प्रेमी है, जो प्रेयसी को रिझाने बैठा
है इस दिल में
वो एक दिवाना है दिवानगी बन बैठा है
इस दिल में
वो एक छलिया है छल से आ बैठा है
इस दिल में
वो एक बहुरूपिया है रूप बदलता रहता है
हर पल इस दिल में।
अब तो बता दे कौन है, क्या रिश्ता है तेरा
मेरे इस दिल से
क्यों क़रार आता नहीं जब तक एक बार
झाँक कर,
देख न लूँ इस दिल में
क्या रिश्ता है तेरा, मेरे इस दिल से।

