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Neena Ghai

Abstract

4.2  

Neena Ghai

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मैंने मल्हार क्या गाया

मैंने मल्हार क्या गाया

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मैंने मल्हार क्या गाया

तूँ सावन की बदली बन

इन नैनों से ही बरस गया

अकेले में बरसा होता

तो उसका मज़ा कुछ और ही होता

सरे आम बरस के क्यों मुज़रिम बना दिया

सीने में जो राज़ छिपा रखा था

सरे महफ़िल वो राज़ क्यों खोल दिया

मैंने मल्हार क्या गाया

तूँ सावन की बदली बन

इन नैनों से ही बरस गया l 


मल्हार, सावन, मुजरिम, राज़, बरस, नैनों, महफ़िल



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