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Neena Ghai

Abstract

4.1  

Neena Ghai

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भाग्य

भाग्य

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261



कभी दर्दे दिल की दास्तां लिखता हूँ

तो कभी किसी अजनबी के जज्बातों

को राह भी देता हूँ l

तजुर्बेकारों के तजुर्बों को कागज़ पर

उतारता हूँ

तो कभी भटकते हुए अल्फाजों को

ज़ुबान भी देता हूँ l


कभी हूर परी के होठों की मुस्करहट को

आकार देता हूँ

तो कभी किसी माशूका की आँखों में

बसने वाले सपने को साकार भी करता हूँ l

कभी नादान दिल के अरमानों को झुलसने

से बचाता हूँ

तो कभी किसी की ख़ामोशी को आवाज़ भी

देता हूँ l


कभी मजबूर का सबूत बन साथ खड़ा हो जाता हूँ

तो कभी किसी अबला की सूनी निगाहों में नीर भी

भर देता हूँ l

मैं हुस्न और इश्क की तस्वीर बना देता हूँ

तो कभी इन दोनों की जुदाई की तकदीर भी

लिख देता हूँ l

मैं हूँ तेरा भाग्य ! न चाहते हुए भी क्रूर बन लिख

जाता हूँ

कर्मों के हिसाब से, तेरे हिस्से की सज़ा भी दे देता हूँ

तो कभी इस शीतल स्याही से ज़ख्मी दिलो पर

मरहम भी लगा देता हूँ l     



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