रहम ! रहम कर मेरे रबा
रहम ! रहम कर मेरे रबा
सुना है कि मौत एक पल की भी मौह्ल्ल्त नहीं देती
क्या दौर आया है कि सब कुछ होते हुये भी
अब ज़िन्दगी अच्छी नहीं लगती
यूं तो हादसों से हर पल ज़िन्दगी गुज़र रही है
बस यही सोच कर जिये जा रहे है, कि हर पल
को इस कदर जिये कि मौत आ भी जाए तो
कोई शिकायत न हो ज़िन्दगी को।
न कोई गिला, न कोई शिकवा है
पर मलाल है इस दिल में
याद रखा जाएगा तेरा 2021 का जलवा
एक टीस सी उठी थी, इस दिल में दर्द सा उठा था
चारों ओर कोहराम मचा था, कई बच्चे हुये अनाथ थे
कई चूड़ियाँ टूट के बिखरीं और मांग उजड़ी थीं
कई माताओं की कोख भी उजड़ी थी
गलियाँ हो गयी सूनी थीं
शमशान हो गए आबाद थे।
क्यूँ बेखबर हो बैठा है, देख कर भी अंजान बना बैठा है
क्यूँ डाले थे जज़्बात इस मुजसमें में क्यों अपने ही हाथों
से तोड़ने को बैठा है।
बस ! अब तो रहम कर मेरे रबा,
हर पल मिट्टी के खिलौने बनाता और बिगड़ाता है
तूँ क्या जाने उस दिल पे क्या गुज़रती है
जब कोई अपना बिछड़ता है, बिछड़ कर फिर मिलेंगे
यह अहसास हसीन होता है।
पर कभी न मिलने की आस भी न हो तो
तो अश्कों की गवाही होती है, और दिल
बड़ी शिद्दत से रोता है।
रहम ! अब तो रहम कर मेरे रबा।
रहम , जज़्बात, मौहल्लत, अंजान,
मुजसमा, गवाही , हसीन ,शमशान, आबाद, गुज़रती।