जब तक खामोश था
जब तक खामोश था
जब तक खामोश था , सब गुणगान करते रहे
सब जीने का अन्दाज़ भी अपने अपने तरीके से सिखाते रहे
जब तक खामोश था सब को भाता रहा
सब जानते हुए भी , अनजान था बना रहा
जब तक ख़ामोश था , सब को भाता रहा
सब जानते हुए भी , अनजान था बना रहा
जब होंठ थे ज़रा से हिलाये
न जाने आंधी और तूफ़ान थे कहाँ से आये
हर एक के लबों पर अल्फाज़ ये थे आये
अरे ! ये तो गज़ब हो गया
इसे जीने का सलीका कहाँ से आ गया
अब अपनी अपनी राय देना ही ठीक था समझा गया
ये तो मगरूर हो है गया , इसका दिमाग़ है ख़राब हो गया
देखते ही देखते न जाने कितने और विशेषणों का अम्बार था लग गया
जो जिसके मन में भरा गुब्बार था निकाल सब कह गया
जब तक होंठ सिले थे सब ठीक ठाक था चलता गया
जब इन होंठों की चुप्पी टूटी
न जाने इस ख़ामोशी की तह में छिपा तूफ़ान कहाँ से था आ गया l