31 दिसम्बर 2020 की अंतिम रात
31 दिसम्बर 2020 की अंतिम रात
एक खौफ़ बनाए अपना खेल
दिखाने के लिए आतुर हो रही थी अभी भी
न जाने सर्द और काली रात
जो बीते न बीत रही थी अभी भी l
2020 साल कुछ अपने में अलग – थलग सा था
पीछे मुड़ कर देखने या सोचने के लिए दुख- दर्द के सिवा
इस संसार में किसी के पास कुछ नहीं था
साल 2020 कुछ ऐसा ही बीता था l
अपने ही घर में रह कर महामारी के भय से भयभीत
इंसान-इंसान से दूर होता चला गया l
अपनो की लाश उठाना तो दूर,
पहचानने से भी इन्कार कर रहे था
आज कोई जयदाद का बटवारा नही था,
पर फिर भी लाशों के ढ़ेर लग गए थे l
श्मशान और कब्रिस्तान कम पड़ गए थे,
न जाने कितने बच्चे अनाथ,
और कितने घर उजड़ गए थे l
त्राहि- त्राहि कर रहा सारा संसार था ,
अजगर बन निगल गया हर छोटे-बङे को
यह 2020 का साल था l
चलते- चलते एक सबक भी सिखा गया है
खान- पान का सही सलीका सिखा गया है
घर परिवार में रहना सिखा गया है
स्वस्थ ठीक रखने के योग और नियम
भी सिखा गया है।
लेकिन न जाने क्यों जी चाहता है,
पलक झपकते ही बीत जाए यह
काली सर्द 31 दिसम्बर 2020 की रात l
लेकर आए पहली जनवरी 2021 नया सवेरा,
नयी उम्मीद की किरण
नयी उमंग के साथ
विदा कर दें हम अपने सारे दुख- दर्द
इस 2020 की इस अन्तिम रात के साथ l
सर्द, आतुर, झपकते, उम्मीद, पलक, निगल,भयभीत।