चाह
चाह
नन्हीं गौरैया की तरह
पंख पसार
उड़ना चाहती थी वो
उन्मुक्त गगन में..
बस..
इतनी सी चाह थी उसकी
आसमां नापना चाहती थी..
पर कहां जानती थी
उसकी निर्मल हंसी-
बलखाता यौवन
चढ़ जाएगा सूली पर
किसी वहशी दरिंदे की..
और वो कराह उठेगी
किसी पर कटे पंछी की भांति
बेबस....लाचार...!
