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Kanak Agarwal

Tragedy Classics Fantasy

4  

Kanak Agarwal

Tragedy Classics Fantasy

चाह

चाह

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नन्हीं गौरैया की तरह

पंख पसार

उड़ना चाहती थी वो

उन्मुक्त गगन में..


बस..

इतनी सी चाह थी उसकी

आसमां नापना चाहती थी..


पर कहां जानती थी

उसकी निर्मल हंसी-

बलखाता यौवन

चढ़ जाएगा सूली पर 

किसी वहशी दरिंदे की..


और वो कराह उठेगी

किसी पर कटे पंछी की भांति

बेबस....लाचार...!


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