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Naseem Khan

Tragedy

4  

Naseem Khan

Tragedy

आज कुछ लिखने का मन हुआ

आज कुछ लिखने का मन हुआ

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342


आज फिर कुछ लिखने का मन किया,

पहले सोचा कि चलो खुद को लिख दूँ आज,

मगर मेरे जीवन की गहराई इन शब्दों से आगे निकल गई

शब्द जो इन लम्हों के फूलों से एक सुंदर माला पर रो रहे हैं

वह मेरे विषय में क्या और कैसे लिखेंगे,

मेरा जीवन तो कांटे हैं और कांटो की मालाएं नहीं बनती,

फिर भी मेरी कलम ने जिद् की कि मैं लिखू कुछ अपने बारे में भी,

कुछ लिखने का प्रयास किया ,तो कोरा कागज लिख गया,

फिर सोचा कोई तो रंग होगा मेरे जीवन में भी

हंसी आ गई यह सोचकर कि मेरे जीवन का कोई रंग ही नहीं

फिर थोड़ी हिम्मत जुटाई और फिर से लिखने का प्रयास किया

सोचा बचपन को लिख दूं

मगर बचपन को लिखते ही मेरी कलम ठहर गई

खुद से सवाल किया कि ,क्या था मेरा बचपन

वह मीठी यादें जो वक्त के साथ धुंधला गई

बड़ों का वो प्यार जो शायद हमारी उसी भोली सूरत पर आता था,

या मिट्टी का वो खेल ,जो आज याद आता है तो बड़े होने के

अफ़सोस का एहसास दिला देता है,

हाय रे "नसीम"ये जवानी, तूने मुझसे सिर्फ मेरा बचपन नहीं छीना

तुमने मेरी मासूम सोच,मेरे सपनों का गगन, परियों की दुनिया,

आसमान की उड़ान,सब छीन लिया

पहले मन कुछ भी करने से पहले वजह नहीं पूछता था,

स्वार्थ के भंवर में तूने ऐसा फंसाया ,

कि आज खुश होने की भी वजह ढूंढता हुँ,

पहले कोई बात अच्छी नहीं लगती थी, तो गला फाड़ कर रो लेते थे नसीम

लेकिन आज सब कुछ गलत होते हुए भी, हमारी आंखों से आंसू नही आते,

ए बचपन बहुत सिखाया तुने,

आज सोचता है मेरा दिल मुझे मासूम ही रहना था,

ए जवानी क्यों समझदार बनाया तूने।



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