शिक्षक की व्यथा
शिक्षक की व्यथा
खोखली नींव से सब विद्यार्थी खुश हैं
खोखली नींव से सब माता-पिता खुश हैं
खोखली नींव से हमारी सरकार खुश है
वो अध्यापक कैसे खुश हो सकता है,
जब,खोखली नींव पे खड़ा देश तमाम है
बिना कर्म परीक्षाफल से टूटा ख्वाब है
आखिर क्यों मिलता उसे सूखा तालाब है
शिक्षक का बस इसी बात का संताप है
बिना परीक्षा,कोई न बनता लाजवाब है
खोखली नींव से भले आज सब खुश है
शिक्षक को आनेवाले भविष्य का दुःख है
जब रेत पर बने महलों की इमारत टूटेगी,
तब किससे मांगोगे आप लोग जवाब है
जब खोखली नींव पे खड़ा देश तमाम है
मेहनत का किया ही फलता है,दोस्तो,
बिन श्रम का फल मन करता खराब है
इसलिये आज जो निकला परिणाम है
शिक्षक हुआ उसे बड़ा दुःखी-हैरान है
क्योंकि आज देश के नौनिहालों का,
बिना परीक्षा के ही उतीर्ण कर देना
दीपक में डाला जैसे पानी का झाग है
जब खोखली नींव पे खड़ा देश तमाम है
तब क्या खाक होगा देश का विकास है
माना साखी परिस्थितियों विपरीत थी
कोरोना के बीच फंसी अपनी नैया थी
पर क्या,इस डर से परीक्षा न लेना
गधों,को घोड़ो के साथ एक कर देना
क्या उचित फैसले का गुलफाम था?
ख़ास की परीक्षा होती,बोर्ड न सही,
अपने स्थानीय स्तर पर ही होती,
कोरोना मद्देनजर सुरक्षा साथ होती
यूँ तो खोखली न होती नींव तमाम है
इतना भरोसा किया,सरकार आपने
कोरोना में कोरोनायोद्धा बनाया आपने
खास की परीक्षा के लिये भी कह देते,
शिक्षकों अपने स्तर पे करो,इंतजाम है
हम सब शिक्षक फिर आपको बताते,
हम कितने बड़े ज्ञान के कलमकार है
यूँ न शिक्षा पर होने देते कोई घाव है
हम खिलाते,लाख शूलों में गुलाब है
अब जब परिणाम अच्छा न रहेगा,
उजाले से जब दीपक जूझता रहेगा,
आप लोग ही लगाओगे इल्जाम है
परिणाम अच्छा रखो,सब अध्यापकों
नही तो मिलेगा दण्ड बड़ा खराब है
फिर भी हम लोग हार नही मानेंगे,
जलते हुए अंगारों पर अक्षु डालेंगे,
क्योंकि हम लोग शिक्षक अवाम है
पत्थरों पर भी बार-बार कर अभ्यास,
बनाएंगे ज्ञानरस्सी के उस पे निशान है
शिक्षकों ने माना,हम शिष्य कलाम है.