"पुरुष व्यथा"
"पुरुष व्यथा"
सब लोग पुरुषों को यूँ ही कहते हैं,बुरा-भला
कोई नही करता है,यहां सच्चाई से तर गला
सबको यहां बस औरत के आंसू दिखते हैं,
कोई न देखता है,पुरुष आंखों को है,भरा
इस दुनिया मे शायद ही किसे महसूस हो,
पुरुषों के भीतर है, कितना बड़ा जलजला
लखनऊ की घटना से ऐसा सबक है,मिला
उससे भीतर तक मेरा दिल है,बहुत हिला
क्या पुरुष इज्जत का न बचा है,कोई किला?
क्या उसे नर को बेज्जत करने का हक है,मिला?
पब्लिसिटी वास्ते ऐसी औरते झूठ बोलती है
निर्दोष को पीट,बता रही खुद को वो निर्बला
जिसके दामन में झूठ,फ़रेब का दाग है,लगा
वो खुद का दामन बता रही है,पाक उजला
वो तो सीसीटीवी कैमरे ने सच बता दिया,
न तो पुरुषों को कौन समझता यहां भला
गर न करती द्रोपदी दुर्योधन का अपमान
न होती लाखों नरसंहार की वो युद्धलीला
अधिकांश पुरुषों में न है,विष का कोई कतरा
पर कुछ स्त्री में नागिन से ज्यादा जहर है,भरा
व्यर्थ में एक सरल आदमी को लखनऊ में,
सरेआम पीटा,मोबाइल का तोड़ दिया,गला
इस जगत मे आत्मसम्मान सबका होता है,
क्या पुरुष,क्या स्त्री सबका सूखता है,गला
वो तो सीसीटीवी कैमरे ने सच बता दिया,
नही तो पुरुष को कौन समझता,यहाँ भला
माना की स्त्री पवित्र है,पर पुरुष भी इत्र है,
हरबार पुरुष न होता है,गलती का पुतला
लखनऊ घटना वाली वो स्त्री,स्त्री नही है,
वो तो औरत के नाम पर कलंक है,बड़ा
सब स्त्री में मातारानी का अंश है,अगला
अधिकतर पुरुषों की ऐसी सोच है,निर्मला
फिर कोई स्त्री उसे बनाये,आम पिलपिला
ऐसी स्त्री का जरूर बजना चाहिए,तबला
यह काले पेंट को बोलती,ड्रोन हमले की कला
ऐसी पगली औरत को दिखाओ जेल,तला
वो तो सीसीटीवी कैमरे ने सच बता दिया,
नही तो पुरुष को कौन समझता,यहां भला
उस लखनऊ वाले पुरुष को इंसाफ मिले,
जो उसने कल सम्मान खोया था,पिछला
हर बार पुरुष नही होता है,गलत गमला
बहुत बार स्त्रियां भी बताती है,झूठी कला
जो औरते,अक्सर खुद को बताती है,अबला
वो औरतें पुरुषों का ज्यादा बजाती है,तबला
ऐसी नागिन सी औरतों से सब सतर्क रहो,
लखनऊ के भाई को न्याय दिलाओ,पहला
अगली बार कोई सीसीटीवी कैमरा हो न हो,
मन के सीसीटीवी से जरुर ले सही फैसला
हर बार पुरुष पर न हो,साखी सीधा हमला
बहुत सी बार, कुछ स्त्रियां भी होती है,बला
पुरुषों की अपनी इज्जत का होता है,शीशा
कोई स्त्री व्यर्थ न तोड़े,उसकी सम्मान विला
वो तो सीसीटीवी कैमरे ने,सच बता दिया,
नही तो पुरुष को कौन समझता यहां भला।
