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PRATAP CHAUHAN

Tragedy

4  

PRATAP CHAUHAN

Tragedy

उगता सूरज

उगता सूरज

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गाली से भी गंदा अब तो।

         राजनीति का शब्द हुआ है।

कुटिल इरादों के वादों का।

         धोखों का यह खेल हुआ है।

नहीं समझ में आता है।

         क्यों शेर हिंद घबराता है ।

सरहद पर मिटने वालों का।

         क्यों नाम यहाँ दब जाता है।

गद्दारों का नाम यहाँ।

         हर चैनल पर छा जाता है।

शरम नहीं आती है इनको।

          क्यो जमीर मर जाता है।

चैन-अमन से वतन रहेगा।

         यह फौजें दिनभर कहतीं हैं।

हस्तक्षेप हो जाता है जब।

        तब उनकी नजरें झुकती हैं।

धर्मों पर उलझाने वाले 

           बहरूपिये यहाँ घूम रहे।

मासूमों की चीखें सुनने।

          हर गली मोड पर घूम रहे।


भारत की आजादी का जब।

        उगता सूरज निकला था।

 क्रान्ति की आंधी ने तख्ता।

          अंग्रेजों का पलटा था।।

आजादी का जश्न मना था।

           गली कुँज गलियारों में।

अट्टहास वीरों की तब।

              गूँजी थी दीवारों में।।

राजनीति का ओछापन।

           तब मर्यादा में रहता था।

खुलेआम कोई विद्रोही।

            गाली कभी न बोला था।

अब राजनीति के चौबारों की।

          बदली सभी दिशाऐं है।

सत्ता की बस भूल लगी है।

          छायी घोर निशाऐं हैं।


गाली से भी गंदा अब तो।

         राजनीति का शब्द हुआ है।

कुटिल इरादों के वादों का।

         धोखों का यह खेल हुआ है।

नहीं समझ में आता है।

         क्यों शेर हिंद घबराता है ।

सरहद पर मिटने वालों का।

         क्यों नाम यहाँ दब जाता है।

गद्दारों का नाम यहाँ।

         हर चैनल पर छा जाता है।

शरम नहीं आती है हरम को।

          क्यो जमीर मर जाता है।

चैन-अमन से वतन रहेगा।

         यह फौजें दिनभर कहतीं हैं।

हस्तक्षेप हो जाता है जब।

        तब उनकी नजरें झुकती हैं।

धर्मों पर उलझाने वाले 

           बहरूपिये यहाँ घूम रहे।

मासूमों की चीखें सुनने।

          हर गली मोड पर घूम रहे।

राष्ट्रप्रेम की खातिर ही।

           सरहदे शहादत होती है।

उन वीरों की यादों में तो।

           कुर्बानी बेसुध रोती हैं।


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