कलयुग का यह कैसा दौर !
कलयुग का यह कैसा दौर !
इन मुश्किल हालातों में भी आशाओं की किरण दिखाई देती है,
हर जगह है इर्ष्या ,क्रूरता यह व्याख्या दिल दहला देती है।
हुई है लाखों मौत यह बात सब जानते हैं ।
है इसके अलावा भी बहुत कुछ जिससे हम जानबूझकर अनजान रहते हैं।।
क्रूरता वही जो मानव किया करता है अपनी ही धरती माता पर।
है अभी वह उत्तम समय चुकाने का इसका कर।।
हुआ है समय का यह कैसा पलटफेर।
कहां छोटी कहां बड़ी सभी संस्थाने हुई है ढेर।।
जिस मनुष्य को ढूंढना था चंद्रमा पर घर।
आज उसमें एक नूतन कोशिका ने बसाया अपना विशाल घर।।
भूल गया था इंसान उससे भी कोई ऊपर है।
एक विषाणु ने बता दिया कि इंसान अभी भी प्रकृति से नीचे हैं।।
उन्नति प्राप्त करने में बुराई नहीं पर सब को देखना फर्ज है।
क्यों भूल जाता है मनुष्य कि उस पर धरती माता का कर्ज है।।
इस मेहमान को आए हुए है चन्द महीने, और सबने इसे भेजने की तैयारी की है शुरु।
भारत ने भी किया श्री गणेश, बनने का विश्व गुरु।।
पता चला इस दौर में है कि हर देश में है मानव का क्रोध।
वह ईश्वर का है प्रत्यक्ष दूत जो निकाले इसका शोध।।
मानव ढूंढने लगे अगर एक दूसरे में परमात्मा को।
नहीं होंगी क्रोध, इर्ष्या अपनों के मस्तकों को झुकाने को।।
कलयुग का यह कैसा दुर्भाग्य अपनों से सब चाहते हैं भागना।
क्यों भूल गया रे मानव, हमें साथ में हमारे पूर्वज चाहते थे रखना।।
तो क्यों ना हम साथ आए, साथ आकर चुनौतियों से लड़े।
है अमर कोई नहीं, क्यों ना हो साथ खड़े ।।
मुश्किल हालातों में भी आशाओं की किरण दिखाई देती है,
हर जगह है क्रूरता यह व्याख्या दिल दहला देती है।
