बुरी आदत
बुरी आदत
बहुत रोई थी
वह अभागी माँ
जब पता चला
बेटा भी
पिता की तरह
नशे का शिकार है।
जवानी में
पति को खोकर
बड़े जतन से
बेटे को पाला
पढ़ाया लिखाया।
कालेज क्या भेजा
हर स्वप्न
चूर-चूर हो गया
जब बेटा भी
माँ को छल गया।
प्रभु से कर रही शिकायत
क्या कमी थी परवरिश में
माँ-बाप दोनों बन पाला
समय आने पर छीना निवाला।
क्यों तरस प्रभु को न आया
एक बेवा पर ये जुल्म ढाया
मज़बूर बेचारी करे गुहार
कोई बचा दे उसकी औलाद।
डा.की बात न समझ आती थी
पति का चेहरा धुँधलाती थी
बेटे को देखती प्यासी नजरों से
कुदरत की मार रो रोकर बहाती ।
बेटे की माफी को अनसुना करती
बस अपने भाग्य को कोसती
डा. का ढांढस कुछ पल रहता
आँखों से गंगा जमना बहती ।