बुरा ख्वाब
बुरा ख्वाब
हम सोचते जैसे बनेंगे वैसे, सोच सही रखिए जनाब।
सुख-दुख है जीवन में जैसे, वैसे ही अच्छे बुरे है ख्वाब।
ज़ुबां पर कुछ और है होता, और मन में कुछ होता है और।
पूजें देवी सम नवरात्रि भर जिसको, बाद आचरण है कुछ और।
कुदृष्टि देवी पर डालें, नर पिशाच पर करना हम सबने गौर।
सब मिलकर के सबक सिखाएं, इन्हें धरा पर मिले न ठौर।
भयाक्रांत है मातृशक्ति अब, हैं हालात बहुत ही खराब।
सुख-दुख हैं जीवन में जैसे, वैसे ही अच्छे बुरे हैं ख्वाब।
नैतिकता का लोप रहा, समस्या यह हो रही बड़ी ही गंभीर।
विकृत मानसिकता फैल रही है, खुद के बस में नहीं शरीर।
यौन-शारीरिक हिंसा फैल रही, इस पर लगता नहीं विराम।
चाहते है अनुगामी अपने, बने बुद्ध, कृष्ण और मर्यादा वाले राम।
फिर क्यों भाव नकारा फैलते, समाज का क्यों है माहौल खराब।
सुख-दुख हैं जीवन में जैसे, वैसे ही अच्छे बुरे हैं ख्वाब।
जब बलिवेदी चढ़े निर्भया, तब हम हैं खूब दिखाते जोश।
वक्त बीतता भूल हैं जाते, और हो जाते है सब ही खामोश।
दुर्घटनाएं तो होती है रहती, चाहे वह उन्नाव हो या हैदराबाद।
रुकती ना कलुषित मानसिकता, मानवता होती है बर्बाद।
नर पिशाच संग जरा सी नरमी, इसके परिणाम तो बड़े खराब।
सुख-दुख है जीवन में जैसे, वैसे ही अच्छे बुरे है ख्वाब।
नहीं रुकेंगे नहीं झुकेंगे, हम सबने अब लिया है ठान।
केवल बातों से ही न झलके, वचन-कर्म-मन से सम्मान।
भगिनी, पुत्री और मातृशक्ति है, नारी है धरती की शान।
जन-जन में संस्कार में पनपे, हर मानव को हो यह ज्ञान।
त्यागमूर्ति नारी अब माॉ॑गे, सब मानव अब देवें जवाब।
सुख-दुख हैं जीवन में जैसे, वैसे ही अच्छे बुरे है ख्वाब।
