बुलबुले
बुलबुले
धूप, आंधी, तूफान, बरसात को झेलता हुआ
धरती में जड़ें जमाए आसमां से मुकाबला करता हुआ
कोई गुल ऐसे ही फलीभूत नहीं हो जाता है।
उसके हृदय में रक्त का प्रवाह करने
कोरे सपनों को रंगीन करने
शाखाओं को नृत्य का आनंद देने के लिए
अनेक बुलबुलें उसके आगोश में समा जाती हैं।
बुलबुलें भी गुल का आशियाना पाकर
खुद को सुरक्षित महसूस करती हैं
डाल पर बैठकर चहकती हैं, गीत गाती हैं
प्यार के हजारों रंग बिखेरती हैं।
प्यार करना ही उनकी प्रकृति है।
मीठे गीत सुनाना, गुल का दिल बहलाना
फूलों की मुस्कुराहटों के साथ लय मिलाना
झरनों की सरसराहट से कदमताल करना
हवाओं के साथ बहना, नदियों के साथ मचलना
चांद तारों से बातें करना।
पर सब कुछ बुलबुलों के चाहने से नहीं होता है
कोई न कोई बहेलिया बुलबुलों की ताक में अवश्य रहता है
जरा सी असावधानी बुलबुल का जीवन नर्क बना देती है
सदा चहकने वाली बुलबुल गीत गाना भूल जाती है
गुल भी बेबस सा आंसू बहाता रह जाता है
और बहेलिया अपनी दुष्टता पर अट्टहास करके जश्न मनाता है
काश ! बुलबुलें बहेलियों को पहचान पातीं
अपनी प्रकृति के अनुसार सदैव गीत गातीं
तो दुनिया का नजारा कुछ और ही होता
गुल भी बुलबुलों को गाते देखकर पुष्पित पल्लवित होता।।