"बुझता हुआ चिराग"
"बुझता हुआ चिराग"
आजकल में मुश्किलों में हूँ,
थका थका सा कुछ अंसमंज में हूँ।
पता नहीं किस गली में जाना है,
एक बुझता हुआ चिराग हूँ।"
रातें लम्बी, तन्हाई साथ है,
खोए हुए ख्वाबों की बात है।
सितारों की चमक, राहों का सफर,
मैं हूँ या ना हूँ, यह एक सवाल है।
कहाँ जाऊं, अपनी राह कैसे बनाऊं,
बुझता हुआ चिराग, मैं कैसे जलाऊं?
धूप में छाया, रातें हैं सुनसान,
इस खोई बातों में, ढला हुआ जहां।
सपनों का सफर, राह में बिछाएं,
आशा से दूर बुझता हुआ चिरागl
सीखे हर पल, जिंदगी की कहानी,
बुझता हुआ चिराग, फिर से जीने की कहानी।
गहरी रातों में, चमका जाए सितारा,
बुझता हुआ चिराग, कहीं मिले सवेरा।
आज भी रातें, लम्बी हैं मेरी,
बुझता हुआ चिराग हूँ आसमान में तेरी।
हर रात की चुपके से बातें हैं कहीं,
बुझता हुआ चिराग, बस ख्वाबों में रहता है।
आज भी मैं, मुश्किलों का सामना करता हूँ,
थका नहीं, हारा नहीं, अपनी राहों पर चलता हूँ।
बुझता हुआ चिराग, हूँ मैं बेहद अजब,
जलता रहूंगा, ख्वाबों की दुनिया में हर पल।
रात की चुपके से बातें, सुनी सुनी सी,
बुझता हुआ चिराग, आगे का सफर है खासी।"
यह सही हैं आजकल में मुश्किल में हूँ ,
थका थका सा कुछ अंसमंज में हूँ l
मुझे पता ही नहीं किस गली में जाना हैं,
एक बुझता हुआ चिराग हूँ l
आजकल की मुश्किलों में, हूँ बेहद अकेला,
थका थका सा, अंसमंज में बहुत उलझा।
गलीयों की भटकन, कहीं कोई रास्ता नहीं,
बुझता हुआ चिराग, जीवन की बेहद छोटी कहानी।
खोए ख्वाबों की दुनिया, सपनों का सफर,
हर कदम पर, हूँ मैं आगे बढ़ता।
धुंआ हूँ चिराग का, बुझा हुआ नहीं,
राहों में हूँ खोजता, अपना हक़ ही।
क्या पता किस गली में, मिलेगा सफलता का रास्ता,
बुझता हुआ चिराग, नहीं हूँ मैं हारा।
जलता रहूँगा, चमकता रहूँगा,
अपने सपनों की रोशनी, मेरी तक़दीर बनाए।
यह सही हैं आजकल में मुश्किल में हूँ ,
थका थका सा कुछ अंसमंज में हूँ l
मुझे पता ही नहीं किस गली में जाना हैं,
एक बुझता हुआ चिराग हूँ l
आजकल की मुश्किलों में, मैं हूँ अकेला,
थका थका सा, खोया हुआ असमंजस में।
राहों की मुट्ठी खुली, कहीं भी जाना है,
एक बुझता हुआ चिराग, सपनों का जहां हूँ।"
यह सही हैं आजकल में मुश्किल में हूँ ,
थका थका सा कुछ असमंजस में हूँ l
मुझे पता ही नहीं किस गली में जाना हैं,
एक बुझता हुआ चिराग हूँ l
आजकल की मुश्किलों में, मैं हूँ बेहद उलझा,
थका थका सा, असमंजस में गुम हुआ।
गलियों की मैं धूप, सिरहाना हूँ धुआँ,
एक बुझता हुआ चिराग, सपनों की परवाह हूँ।
ज़िंदगी की मुश्किलों में, हूँ मैं संघर्ष के बीच,
थका थका सा, असमंजस में बीतता हूँ।
राहों की भटकन, कहीं सही गली में ले जाएगी,
एक बुझता हुआ चिराग, अपनी कहानी में हूँ
ज़िंदगी का सफर, है मेरे हर कदम पे एक सवाल,
थका थका सा, असमंजस में लिपटा हुआ ख्वाब।
मेरी आँखों में है एक उम्मीद का चमक,
एक बुझता हुआ चिराग, हूँ मैं ख्वाबों का साहिल।
मेरे दिल की धड़कन, है अभी भी हौसला बनी,
राहों में मैं, हूँ खोजता अपना रास्ता।
जो मुझे नहीं पता, कहीं वहां छुपा है जवाब,
एक बुझता हुआ चिराग, हूँ मैं, अपनी मंजिल की खोज में।"
गलीयों में बिखरा, खोया हुआ सफर हूँ,
एक बुझता हुआ चिराग, रातों में बेचैन हूँ।
मेरी राहें अनजान, मेरा हक़ नहीं पक्का,
बुझता हुआ चिराग, अपनी आसमानी कहानी हूँ।"
गलियों की गहराइयों में, बसा हुआ एक राज,
एक बुझता हुआ चिराग, ख्वाबों की उड़ान भरता हूँ।
मुझे पता नहीं, कौन सी मंजिल पे है राह,
पर बुझता हुआ चिराग, उम्मीद की चमक से भरा हूँ।
रात की घनी छाँव में, बची हुई रौशनी,
एक बुझता हुआ चिराग, सपनों की ऊँचाइयों पर चढ़ता हूँ।
कभी किसी मोड़ पे, मिले कोई सही जवाब,
बुझता हुआ चिराग, हूँ मैं, अपने किस्सों का ।