बता ना ऐ ज़िंदगी..!
बता ना ऐ ज़िंदगी..!
समझ ना आई आजतक ये बात
भयावह होती है काली अंधेरी रात
या उससे खतरनाक है आदम जात
कुछ तो थी बात वो थी अंधेरी रात
समझ ना सकी मैं भी ज़िंदगी ये बात
क्यूँ आई थी तू उस एकांत वाली रात
मैं भी सहम सी गई थी यूँ तुझे आते देख
उफ़्फ़्फ़..! यूँ लगता था मानो मेरे भीतर ही
अमावस की वो रात उतरती चली गई थी..!
सारी की सारी स्याही उड़ेल दिया किसी ने मुझ में
ओह..! बाहर इतना उजाला फिर भी इतनी डरावनी
मानो तेरे साथ साथ कोई अदृश्य साया भी
मुझे नोच खाने को आतुर हो आगे बढ़ा आ रहा
बता ना..! क्यूँ किया तूने..?
हाँ..! उस विभत्स यामिनी में भी था कोई
अनिछित अनहोनी से बचाने को तत्पर
पर..! मैं आज भी अनुत्तरित हूँ
तू किस इरादे से आई थी मेरी पास
एक रहस्य बना हुआ है आज भी
वो अमा की स्याही रात थी या फिर
पूर्ण प्रकाश बिखेरे पूरनमासी की रात
भयानक भयंकर थी वो रात या फिर
भयावह होता है ये आदमजात
बता ना ऐ ज़िंदगी क्यूँ आउ थी...!
