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Kusum Lakhera

Classics Fantasy

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Kusum Lakhera

Classics Fantasy

बसन्त ....

बसन्त ....

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जब मन प्रफुल्लित गाए 

मेघ मल्हार ....

जब सूर्य किरणों का दस दिशाओं

में हो प्रसार !


जब वासन्ती की मादकता से

वन उपवन में गूंजें भँवरों की गुंजार !

जब माँ शारदा से माँगे हम सब ,

ज्ञान का उपहार !


जब कोकिला के स्वर की मिठास..

से वन उपवन हों गुलज़ार !!

तब वसंत फूलों सा महकता हुआ !

पंछियों सा चहकता सा !

सरसों सा स्वर्णिम आभा बिखेरे !


दस्तक देता है ....

और प्रसन्नचित्त मन मधुर गीत गाता है !

धरा का चित्त भी खिलखिलाता है !


नव रूप लेकर नव रंग लेकर जीवन की 

नीरसता को मिटाता है !

नव आशा का संचार करता !

हर्ष के गीत गाता है !!

प्रकृति के सौंदर्य को देखो कितना अनुपम 

बनाता है !

ये देखो कितना मनोरम बसन्त आता है !


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