बसन्त ....
बसन्त ....
जब मन प्रफुल्लित गाए
मेघ मल्हार ....
जब सूर्य किरणों का दस दिशाओं
में हो प्रसार !
जब वासन्ती की मादकता से
वन उपवन में गूंजें भँवरों की गुंजार !
जब माँ शारदा से माँगे हम सब ,
ज्ञान का उपहार !
जब कोकिला के स्वर की मिठास..
से वन उपवन हों गुलज़ार !!
तब वसंत फूलों सा महकता हुआ !
पंछियों सा चहकता सा !
सरसों सा स्वर्णिम आभा बिखेरे !
दस्तक देता है ....
और प्रसन्नचित्त मन मधुर गीत गाता है !
धरा का चित्त भी खिलखिलाता है !
नव रूप लेकर नव रंग लेकर जीवन की
नीरसता को मिटाता है !
नव आशा का संचार करता !
हर्ष के गीत गाता है !!
प्रकृति के सौंदर्य को देखो कितना अनुपम
बनाता है !
ये देखो कितना मनोरम बसन्त आता है !
