बसंत ऋतु का आगमन
बसंत ऋतु का आगमन
मन मचल तन जल रहा कब प्रिय मिलन होगा।
कूक कोयल संग पूछे कब सजन होगा॥
खत लिखूँ किस नाम से तुम बस गये मुझमें।
ढूँढ़ कैसे कह निकाले सोचते सबमें॥
तन लपेटूँ मन समेटूँ बन वसन रहना। आगमन के गीत गाऊँ तुम मनन करना॥
पंख फैला उड़ दिखाऊँ रुख़ गगन होगा।
कूक कोयल संग पूछे कब सजन होगा॥
मन मचल तन जल रहा कब प्रिय मिलन होगा॥
पुष्प बन रख सर सजा लूँ भाल मैं चंदन।
कह तुम्हारा पथ बनूँ कर जोड़ हो वंदन॥
बाग देखूँ शांत चित्त हो खो उसी जाऊँ।
रच दिया भ्रम प्रेम प्रभु गोता वहीं खाऊँ॥
मग्न अपने धुन पुकारे सुख नयन होगा।
कूक कोयल संग पूछे कब सजन होगा॥
मन मचल तन जल रहा कब प्रिय मिलन होगा॥

