मेरे हमसफ़र
मेरे हमसफ़र
क्या कहूँ ?
साथी, जिंदगी, हमसफ़र !
सब तुम हो।
पहली बार मिली,
सदा को मिल गयी।
न जाने, न पहचाने,
हँसी, खुशी, गम,सब एक।
फिर-
कहाँ अलग हो पाये ?
तन दो, मन एक ही है़।
नया आशियाना बना,
छोटा सा, सारी खुशियाँ जिसमें,
कई छोटे चाह जगे,
सब पूरा हुआ।
इसे कहते घर बसाना।
दो प्यारे बच्चे, बड़े होते,
उड़ने को तैयार,
सारा गगन उसका,
डोर थामें रखना है़।
बच्चों के घर बसे, सँवरें,
हम आजाद।
अग्रसर हो गयी अब,
ढलती शाम की ओर।
सब मिला, सपने में जो न था।
जलने वाले जलते,
खूब हाथ मलते।
शायद नहीं,पूरा विश्वास है़,
कृपा है़, पूरी की पूरी,
उस प्रभु की,
उस अदृश्य शक्ति की,
सदैव जो संग हैं,
हमें थामने वाले,
मुश्किलों से बचाने वाले,
बड़े -बुजुर्गों की तरह,
जो नहीं हैं इस जहाँ में।

