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नवल पाल प्रभाकर दिनकर

Drama

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नवल पाल प्रभाकर दिनकर

Drama

बसंत जी

बसंत जी

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पैरों में मखमली जूतियाँ

सिर पर पगड़ी फूलों की

हरियाली रूपी ओढ़ काम्बली

आ गए महंत बसंत जी।


बयार चले ठंडी होकर

तन में कंपकंपी बंध जाती

करती मंत्रमुग्ध हवा

सांसों में समाई है जाती

उत्तर से आने वाली हवा

ठंड है अधिक बढ़ाती।


हरियाली रूपी ओढ़ काम्बली

आ गए महंत बसंत जी।


ऐसी प्यारी ऋतु का

करते हैं स्वागत जीव-जन्तु

भरे उमंग में रहते हैं

थर-थर कांपते हैं तन्तु

रोंए ओर खडे हो जाते

ऐसी ठंड है बढ़ जाती।


हरियाली रूपी ओढ़ काम्बली

आ गए महंत बसंत जी।


पत्ते लय-सुर-ताल मिलाते

थिरक-थिरक नृत्य हैं करते

भर अंजली बिखेरते पत्ते

लगते हैं मानो हवा में तैरते

हंसी ठिठोली करते हैं जब

हवा तेज है हो जाती ।


हरियाली रूपी ओढ़ काम्बली

आ गए महंत बसंत जी।


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