बशर
बशर
दूसरों के सुख में भी दुःख खोज लेता है
कैसा बशर है देखो! कितना सोच लेता है
खुद भरपेट खाता है और भूखे को
भिखारी कहता है
यही अंदाज़ है इसका सब कुछ सोख लेता है
कैसा बशर है देखो! कितना सोच लेता है
आदमियत तो इसकी मानो तस्वीर बन
कहीं दीवार पर टँगी है
इसकी हज़ारों ख़्वाहिशें रेल की पटरी पर
बिखरी पड़ी है
जहां भी मौक़ा देखता है वहीं लम्बी-लम्बी
फेंकता है
अखबारों में भी हर सू इसी का चर्चा रहता है
कैसा बशर है देखो! कितना सोच लेता है
वैसे तो यह औरत को देवी कहने का आदि है
लेकिन उसी देवी की मंगलकीर्ति इसने
अपने बिस्तर में उतारी है
इसने ही उसको कोठों पर बेच बाज़ार की
शोभा बढ़ाई है
बन अबला का रक्षक इस भक्षक ने कीर्ति
पाई है
इसी ने उसे बना द्रौपदी बीच पंचों की सभा में
खेंचा है
देखो अपनी हैवानियत पर यह बशर कितना
ऐंठा है
रोज़-रोज़ नई-नई यह चक्रव्यूह रच लेता है
कैसा बशर है देखो! कितना सोच लेता है
इस नारी ने इसको जन्म दिया इसे
इसका भी लिहाज़ नहीं यह इंसान नहीं है
दानव है
ऐसा कहने में कोई हर्ज़ नहीं भूल बैठा है यह
यही नारी ही नारायणी है यही लक्ष्मी दुर्गा काली
यही वैष्णों शेरोवाली है
जब इसका रौद्र रूप तांडव करने पर आएगा
भूल बैठा है बशर!
इसका नामोनिशान मिट जाएगा
जाने किस झूठी शान पर यह इतना खून पी
लेता है
कैसा बशर है देखो! कितना सोच लेता है.....